मसान।
तेरी श्वासों संग जुड़ी थी मृदुता मेरी,
पर अब ये हृदय पाषाण हो चला।
दो बूँद को आकुल आँखें हुई है मेरी,
यूँ अश्रु ने बंजरता के मर्म को छुआ।
चीखों पर मौन की छाया गहराए अब मेरी,
सन्नाटों ने यूँ निरर्थक शब्दों को कहा।
श्वेत चादर में लिपट रही आशाएं अब मेरी,
जिसे भष्म करने को ये अग्नि व्याकुल सा हुआ।
बोझिल हर पग में तीव्रता सी है मेरी,
ये वियोग आया है कैसा, तू ही बता।
संवेदनों में शून्यता की गूँज है मेरी,
और कोलाहल करती बह रही ये हवा।
पीड़ा पर क्रोध का आवरण है मेरी,
यूँ मन को स्वयं के, स्वयं ही ठगा।
पथ निष्ठुर वास्तविक्ता की समक्ष है मेरी,
अपनाऊं कैसे इस तथ्य को, तू ही समझा।
मन-मस्तिष्क मे सघन स्तब्धता अब मेरी,
और ये मसान तुझे धरा में धूल बना रहा।