हक़ीक़त
मसलहात नज़रअंदाज़
करते रहे ,
अना से सर-अंजाम
करते रहे ,
अपने ग़ुरूर के सुरूर में
हम ‘अर्श पर थे ,
हक़ीक़त से दो-चार हुए तो
हम फ़र्श पर थे ।
मसलहात नज़रअंदाज़
करते रहे ,
अना से सर-अंजाम
करते रहे ,
अपने ग़ुरूर के सुरूर में
हम ‘अर्श पर थे ,
हक़ीक़त से दो-चार हुए तो
हम फ़र्श पर थे ।