मशीन और आदमी
अब तो आदमी को आदमी से फुरसत हो गयी है।
खुशियां न जाने किस ओर रुख़सत हो गयीं है।
आखिर आदमी अब आदमी से मोहब्बत क्यों करे,
दुनिया को अब मशीनों से मोहब्बत हो गयी है।
आदमी का काम अब मशीनों के सहारे है।
रोजगार भी आदमी के मशीनों ने मारे है।
खेल सारा बिगाड़ा है इन्ही मशीनों ने,
पर आदमी पर बेवफा होने की तोहमत हो गयी है।
दुनिया को अब मशीनों से मोहब्बत हो गयी है।
मशीनों पर निर्भरता एक दिन भारी पड़ेगी।
मशीनों से जब प्रकृति जी भर कर लड़ेगी।
मशीनों को क्या पता कि उसकी शिकायत हो गयी है।
दुनिया को अब मशीनों से मोहब्बत हो गयी है।
जिन धंधों को मजदूरों के फौलादी हाथ चलाते थे।
मालिकों को यही मजदूर जी भरकर भाते थे।
मशीनों के आ जाने से मजदूरों पर आफत हो गयी है।
दुनिया को अब मशीनों से मोहब्बत हो गयी है।
-सिद्धार्थ गोरखपुरी