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15 Feb 2017 · 1 min read

मर्यादा

मर्यादा

क्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े,
दिन-रात यूँ ही… घुट -मर्यादा

क्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े,
दिन-रात यूँ ही… घुट -घुट के जियूँ !
क्यों अोड़ … आडम्बर की चादर,
जहर जुदाई… दिन – रात पियूँ !!

अभिलाषाएँ… हैं बल खातीं,
चाहत भरी मंजिल… मुझे बुलाती !
मिले है जीवन… इक बार सभी को,
क्यों न इसे… मैं खुल के जियूँ !!

फिर मर्यादा की… क्यों जपूँ मैं माला
ये जिंदगी अपनी… मर -मर के जियूँ !

अंजु गुप्ता

1 Like · 1 Comment · 342 Views

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