मर्यादा
मर्यादा
क्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े,
दिन-रात यूँ ही… घुट -मर्यादा
क्यों मर्यादा की… चादर ओढ़े,
दिन-रात यूँ ही… घुट -घुट के जियूँ !
क्यों अोड़ … आडम्बर की चादर,
जहर जुदाई… दिन – रात पियूँ !!
अभिलाषाएँ… हैं बल खातीं,
चाहत भरी मंजिल… मुझे बुलाती !
मिले है जीवन… इक बार सभी को,
क्यों न इसे… मैं खुल के जियूँ !!
फिर मर्यादा की… क्यों जपूँ मैं माला
ये जिंदगी अपनी… मर -मर के जियूँ !
अंजु गुप्ता