मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्री राम
*मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम-
श्री हरि के रूप अनेक है,
कई जन्म लीला रचाया
त्रेता युग में अवतरित श्री राम
मानव आज भी पुकारे
उनका स्वर्ण नाम
रघुकुल में जन्मे प्रभु श्री राम
कौशल्या फूली नहीं समाई
एक नहीं चार – चार चिराग जन्मे
देख अयोध्या की हर गली
द्वीपों से सजी
गुरुकुल में रघुकुल शिक्षा लीन्हा
सम्पूर्ण गुण विशिष्ट मुनि दीन्हा
ताड़का मचाई जब उपद्रव
सोलवहे वर्ष में उसका संहार किया
शीला हो कर पडी अहिल्या
राह देख – देख कई युग बीते
जब पतीत पावन परम पग उठाए
तब अहिल्या नारी को सम्मुख पाए
झूम उठी मिथिला पूरी
अहोभाग्य! कौशल्या नंदन के दर्शन पाए
बेचैनी में बैठी सिया सुकुमारी
महादेव का धनुष कौन उठाए?
सृष्टि के योद्धा सारे पधारे
जगत जननी को ब्याहने आए
पर मैया समर्पित है श्री हरि पर
वही है राम, वही उनका वर!
मिथिला पुरी झूमे ऐसे
सुन्दर मन-मोहक दृश्य दिखाए
देख रघुवंशी सुकुमारो को
हर गली मधुर – मुस्कान महाकाय
वीरों से भरा राज दरबार
लज्जाजनक होकर शीश नवाए
जनकपुरी चीख चीख प्रश्न करे,
क्या कोई वीर है
जो पिनाक की प्रत्यंचा चढ़ाएं?
शुभ मुहूर्त में गुरु आज्ञानुसार
श्री राम धनुष तोड़ ब्रम्हाण्ड हिलाया
रामचन्द्रजी ब्याह लाय सिया
तीनों लोकों में उत्सव छाया
राज्यभिषेक की गूँजी बातें
कैकई ने मांगे ऐसे वरदान
पुत्र – वियोग में तड़पे महाराज
अपराध!
नेत्रहीनों के लाठी पर मारे थे बाण
राजतिलक हो भरत भाई का
बनवास आया श्री राम के हिस्से में
वर शूल बन कर ह्रदय में ऐसे फाँसा
चौदह वर्ष अयोध्या ना हँसा
अश्रुधारा , धरा को भिगोय
वचन बद्ध हो दशरथ,
देखो मौन हुए
रघु कुल रीति सदा चली आयी
प्राण जाय, पर वचन ना जाए
राम लखन और सीता मैया
आज्ञा ले, वन को पधारे
पूछ रही अयोध्या की गली
यह दुखद अमावस कैसे जाए?
केवट नौका पार लगाए
पग – पग हरि चरनन में शीश नवाय
ऋषि मुनियों के रक्षक बने नाथ
भूमि को दानव- मुक्त कराए रघुनाथ
श्री राम को रिझाने आई शूर्पणखा
विफल हुये थे सारे षड्यंत्र
लखन का वार खाली ना गया
कुरूप हुई वह कपटी माया
सीता मैया का मन हर्षाया
सोने का मृग बना वह मायावी
मारीच का भी सौभाग्य देखो
हरि बाणों ने स्वर्ग पाठाया
भगिनी मोह की प्रतिशोध में
लंकेश सिया को हर लाया
न पहचान पाया प्रभु की लीला
अहंकार में उसे क्या मिल गया?
नित प्रभु दर्शन की आस लगाए
शबरी राह को पुष्पित करे
झूठे बेर का सेवन करें श्रीराम
भक्ति की नई रचना करे
शबरी का धाम
सिया खोज में वन – वन भटके
किशकिन्धा नरेश सुग्रीव मिले
जो सब दुख हर ले दुखियों के
ऐसे राम – भक्त हनुमान मिले
क्षत्रिय धर्म का पालन कर
बाली , कुम्भकर्ण को पछाड़ा
नाग पाश में जकड़े जब दो भाई
गरुड़ ने उन्हें उबारा
शक्ति बाण लगा लक्ष्मण को जब
संकट छाया फिर रघुवंश पर
भ्राताहीन विलाप में हिम्मत हारे रघुराई
आत्मत्याग को ठान चुके राघव
यह कैसी विपदा आई?
राम भक्त संजीवनी ले उड़े
दिया लखन को जीवन दान
हर्षित हुए अयोध्या नंदन
हनुमत को लगाया कंठ
अंतिम घड़ी कुछ ऐसी आई
कुल दीपक लंका में बचा नहीं था
रावण का संहार करके प्रभु जी ने
प्रभु को पाप से मुक्त किया था
आदर्श मानव, सरल स्वभाव के
प्रतीक है श्री राम
पग-पग परिक्षा दिए थे श्री राम
हुआ राम से बड़ा उनका नाम
जगत कृपाला दीन दयाला
रामायण के संग तुलसीदास की जय भी कहते है
अवध नंदन सिया पति प्रभु राम
कांटों पर चल कर ही
मर्यादापुरुषोत्तम श्री राम कहलाये है
-कवियित्री
सुएता दत्त चौधरी
नौसोरी