मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
दर्द छुपाके सीने में वो छुप-छुप के रोता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
रोये तो वो मर्द नहीं है, ना रोए तो दिल पत्थर
इक इंसान जो ज़िंदा है, पत्थर भी होता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
दर्द छुपाके सीने में वो छुप-छुप के रोता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
घर का बोझ उठाए फिरता, कहने को वो मालिक है
जिम्मेदारी और कर्ज़ों में, कहाँ वो सोता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
भाई, पति या बनके पिता वो फ़र्ज़ निभाता है
सबने ही परिवार धरा पे उसको जोता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
दर्द छुपाके सीने में वो छुप-छुप के रोता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
औरत अबला बेचारी, ये सुनते आए हैं
मर्द कहाँ नाज़ुक है ये तो सख़्त ही होता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
दर्द छुपाके सीने में वो छुप-छुप के रोता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
कोई बना है बैल यहां पर, कोई गधा कोई है घोड़ा
इन सब में भी कोई खच्चर सुधीरा भी होता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है
दर्द छुपाके सीने में वो छुप-छुप के रोता है
मर्दों को भी इस दुनिया में दर्द तो होता है