मरी शिष्टता बिन बीमारी !!
मरी शिष्टता बिन बीमारी !!
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पनघट की प्रेमिल खुशबू को, निगल गई बेशर्मी भारी।
खुली सड़क पर चुम्मा -चाटी, मरी शिष्टता बिन बीमारी।
लाज! शर्म से पानी -पानी, देख रही युग की हठधर्मी।
वर्तमान है सीना ताने, दिखा रहा अपनी बेशर्मी।
वैभव के द्वारे नत् मस्तक, शर्म दिखाये अब लाचारी।
खुली सड़क पर चुम्मा-चाटी, मरी शिष्टता बिन बीमारी।।
फैशन की है आपाधापी,और नग्नता की परिपाटी।
संस्कार अब शरशय्या पर, हालत देख बिलखती माटी।
आव-भगत पाश्चात्य सभ्यता, की अनुपम अद्भुत तैयारी।
खुली सड़क पर चुम्मा-चाटी, मरी शिष्टता बिन बीमारी।।
धर्म अपाहिज बैठा कोनें, नित्य देखता निज की हानी।
कुछ फूहड़पन कुछ पागलपन, मिल दोनों करते मनमानी।
सजी लोक – लज्जा की अर्थी, अब काँधा देने की बारी।
खुली सड़क पर चुम्मा- चाटी, मरी शिष्टता बिन बीमारी।
✍️ संजीव शुक्ल ‘सचिन’