‘मरहबा ‘ ghazal
मरहबा बन के थी, आई वो भले शब मुझको,
इक नज़र भर के, पर देखा भी उसने, कब मुझको।
पूछ लेता वो, मुस्कुरा के जो अहवाल कभी,
गिला रहता, न तो शिकवा ही कोई तब मुझको।
उसका दीदार ही, कुछ मुझको दे राहत शायद,
जानलेवा हुई, तनहाइयाँ हैं, अब मुझको।
आइने मेँ जो उसका अक्स था, नज़र आया,
शिद्दते-इश्क़ का अहसास हुआ, तब मुझको।
मैं अजूबा तो नहीं, प्रेम किया हो जिसने,
देखते क्यूँ हैं यूं अचरज से भला, सब मुझको।
तर्के-वादा-ए-वस्ल, उसका इक शग़ल ठहरा,
उसके आते भी, किस तरह से भला, ढब मुझको।
दिल दुखाता है, ये बेदर्द ज़माना “आशा”,
कुछ तो दे बख्श कभी, काश, मेरा रब मुझको।
मरहबा # धन्य, hail,
अहवाल# हालात, state of affairs
तर्के-वादा-ए-वस्ल # मिलने का वादा तोड़ देना, to break the promise of meeting
ढब# तौर-तरीका, manners