मरना सूर्य का
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मरना सूर्य का तय है।
सम्पूर्ण जो दिखता है,होना क्षय है।
सत्य केवल समय है।
विस्तार का सिकुड़ना और विंदु का फैलना ही
शाश्वत ब्रह्म है।
ब्रह्म है आत्मलीन।
हर क्षण सृष्टि रचने में।
विध्वंस जो दिखता है वस्तुत: है हिस्सा
ब्रह्म के नवनिर्माण की प्रक्रिया
प्रस्तुत,सजने में।
हमारे दैहिक सृष्टि का है,
सूर्य प्रत्यक्ष देवता।
सृजन के पालन-पोषण,वर्द्धन हेतु
ऊष्मा बिखेरता।
बहुत संवेदना है सूर्य में पिता की तरह।
पथ दिखाता पिता की भांति।
और वात्सल्य भी उँड़ेलता माँ की तरह।
पुष्ट कर वनस्पतियां विभिन्न।
देह सहलाता माँ की भांति।
पुष्ट करने तन विटामिनों से।
सूर्य सँभालता है पृथ्वी का अस्तित्व।
उत्सर्जन से ऊर्जा करके प्रदान।
मुसकाती रहे पृथ्वी इसलिए
हलचल मचाए रखता है
हर जड़,चेतन को देकर प्राण।
सूर्य जीवित है जलता हुआ।
मर जायगा बुझकर।
अपने गर्भ से परिधि के पर्त तक
अविराम जलता हुआ सूरज
खूबसूरत है, शक्तिशाली भी।
सूर्य है पूजनीय।
है नित्य-वंदनीय।
आभार हे दिनकर, आपका।
अध्ययन सूर्य का काल्पनिक नहीं
वास्तव में ब्रह्मांड का
वास्तविक अध्ययन है।
हमारा ब्रह्मा जो वेद देकर गया
वह सूर्य ही को तो।
सूर्य समेटे है आज भी।
इसलिए हमारा सूर्य ब्रह्म है।
और
सूर्य के जन्म के रहस्य ही में
अनंत ब्रह्मांड का निहित जन्म है।
प्रकाश एवं अंधकार की अनुभूति
सूर्य है।
निविड़ अंधकार से प्रकाश की ओर
ले चलने वाला सूर्य है।
ज्ञान का अंधकार
और
अज्ञान का प्रकाश
जब बदल लेता है सूर्य तो
सृष्टि का सारा रहस्य खुलता है।
किन्तु,उस बदलने तक
सूर्य को अपनी उम्र छोटी है।
जो सूर्य मरता है वह हमारा सूर्य है।
सूर्य हमारे लिए मरता है।
हमारा पुनर्जन्म करने स्थापित।
सूर्य का ब्रह्मांडीय उम्र असीम है।
उसके पास विष से प्राप्त अमरता है।
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