मरकर भी सह रही गरीबी
बीमारी से बेबस लाचार
दुख के बादल घिर आया था
छोड दिया जब साथ संगिनी
एंबुलेंस भी न पाया था।
दवा मिली न साधन सुविधा
तीन दिनों से न खाया था ।
मर गयी मानवता लोगों की
किसी की मदद न पाया था।
देख दुर्दशा दीन दुखी की
जिसने जीवन साथी खोया था
वह उसका अन्तिम साथी था
चार कांध भी न पाया था
शर्मसार मानवता हो गयी
ईश्वर ने यह दुख ढाया था
साथी था पति सात जन्म का
दुख का सागर भर आया था
कंधा पाकर स्वयं पती का
मरकर भी वह धन्य हो गयी
आंखों में आंसू भर आया था।
अबतक वह सह रही गरीबी
पति गुजर करेगे कैसे
सोच सोच मन घबराया था।
द्रवित हृदय से विन्ध्यप्रकाश मिश्र