मयखाने में जाकर बैठे खुद ही पीना सीख गए।
मयखाने में जाकर बैठे खुद ही पीना सीख गए।
नज़रें चार हुई साकी से जीना मरना सीख गए।
रिश्तों की परतें खोली तो परत हट गयी नज़रों से।
ख़ामोशी का हुनर आ गया खुद ही कहना सीख गए।
जब तक आखों में ही रखा बेचैनी में भीगा था।
चैन आ गया जब से मेरे आसूं बहना सीख गए।
हवस लूटने की जब तक थी दिल खाली ही लगता था।
अब लगता है सब जग अपना जबसे देना सीख गए।
अपनों के तानें सुनकर भी चेहरे पर मुस्कान रही।
तब जाकर हमने यह जाना हम भी सुनना सीख गए।
अर्श फर्श तक इस दुनियां को मेरी नज़रें देख रहीं।
अब हमको मत बहकाओ तुम हम भी रहना सीख गए।
तुम भी खाली हाथ फिरोगे “नज़र” पास जब आओगे।
वादा करना पीछे हटना हम भी ठगना सीख गए।