ममता
तेरा हौले से माॅं कह देना,
मुझे देखकर यूं हॅंस देना,
तन- मन में उठाता हिलोर
ममता का कोई ओर न छोर।
माॅं बनकर है इतना जाना,
स्नेह का अद्भुत खजाना,
हृदय में किसने रखा सकोर?
ममता का कोई ओर ना छोर।
तुझ पर सब न्यौछावर,
तुझे ना लगे बुरी नजर,
तू चाॅंद में बन गई चकोर,
ममता का कोई ओर न छोर।
जननी बन जननी को जाना,
उनकी ममता को पहचाना,
याद आता बीता हुआ दौर,
ममता का कोई ओर न छोर।
तुझ में मेरा बचपन खिलता,
तेरा सपना मुझ में पलता,
तू ही है मेरा चित्त चोर,
ममता का कोई ओर न छोर।
तुम रिश्तो के नव सेतु बने,
प्रणय अर्थों के नव हेतु बने,
पुलकित मेरा पोर-पोर,
ममता का कोई ओर न छोर।
—प्रतीभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर (राजस्थान)