मन
कई प्रश्न जो निरंतर आती है,
अपने मन के भीतर हीलोड़े खाती है l
इस मन को कैसे समझाऊं मैं ,
न जाने क्यों मेरा मन उदासीनता से भरा है l
मुस्कुराहट चेहरे पर आती नहीं है ,
दंतो की पंक्तियां ओस्ठ के भीतर रह जाती हैl
नयन सूखे पर गए हैं मेरे ,
आंसू भी इससे नहीं निकलते l
फिर भी मन को समझाना पड़ता है ,
और आंसुओं को रोककर रखना पड़ता हैl
—उत्तीर्णा धर