मन
मन
मन पर्वत मन खाईयां,मन नदिया की धार।
ऊबड़-खाबड़ मन हुआ,मन धोरा मन थार।।
हिम मंडित मन ये हुआ, बना हिमालय आप।
पिघल-पिघल मन बह चला, उड़ा बना मन भाप।।
सागर मन लहरा उठा,”मौज” हुआ मन खार।
पवन हुआ मन बह चला,कर गया सीमा पार।।
भोला मन बैरी हुआ,भागे पर घर जाय।
मन खूंटा जो अड़ गया, बांधूं मन को पाय।।
मन पंछी बन उड़ गया, गया पराए देश।
“मौज” हुआ मन औलिया, पल-पल बदले वेश।।
भोर हुआ मन आरती,सांझ हुए मन शोर।
दोपहरी मन तावड़ा,रात हुई मन चोर।।
मन कांटा मन फूल है,मन है भीषण भूल।
“मौज” हुआ मन बावरा, खूब उड़ाए धूल।।
विमला महरिया “मौज”