मन
मन मानो मन- मन है ,
वास्तविकता जन- जन है ।
खोवत पावत रचत बिगाड़त,
खेल विधाता का तन -तन है ।
सोचत सोचत तन -बन तिनका ,
मीत मिला नहीं मोहे मन का ।
सोचत सोचत रैन बिसारी ,
सतपाल सत्य सारथी।
पल पल बन बन जिनका ,
हियाँ तोडत निपट अभागा ।
धोवत धोवत मन मैल भागा,
जागत जागत मै जागा।।
सतपाल चौहान