मन
मन – पंकज त्रिवेदी
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मन !
ये मन है जो कितना कुछ सोचता है
क्या क्या सोचता है और क्या क्या
दिखाते हैं हम…
मन !
जो भी सोचता है वो न हम कहते हैं
न वोही सोचते हैं जो हम कह देते हैं
छलते हैं हम…
मन !
कभी हमें आनंद देता है हमारे झूठ के लिए
कभी हमें ही कोसता रहता है झूठ के लिए
ठगते हैं हम…
मन !
ऐसा भी हों कि जो चाहें वोही कहते हैं हम
जो सोचें वो अच्छा हों और उसी को सुनें हम
सुनते हैं हम…
मन !
कभी अपने दिल की बात मानता है तो कभी
किसीके बहकावे में आकर कुछ भी कर देते हैं
कर देते हैं हम…
मन !
यही मन है जो दिन-रात सपने दिखाता है
यही मन है जो सपनों से ज़िंदगी सजाता है
ज़िंदगी बनाते हैं हम…
मन !
मन ही हमें भटकने को मजबूर करता है तो
मन ही हमें कुसंग से सत्संग करवाता है और
इंसान बन जाते हैं हम…
मन !
मन चल है, अचल भी है मन ही मरकट है
मन ही पहचान है, मन साधना का साधन
मन ही है तो है हम….
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