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29 May 2021 · 1 min read

मन

बरसते मेघ को देख
भीगने को करता है मन
उठती उमंगों में
बहक जाने को करता है मन
उठती मिट्टी की महक से
महक जाता है मन
यार की यादों में
प्यार से भर जाता है मन
मोर को नाचते देख
थिरक जाने को करता है मन
इंद्रधनुष के रंगों में
रंग जाता है मन
लिपट साजन से
खो जाने को करता है मन
छोड़ जिस्म को
रूह से मिल जाने को करता है मन
खनखन करती बूंदों से
खनक जाता है मन
बहते पानी को देख
बह जाने को करता है मन
हर गम को भुला
खुशी से भर जाता है मन
जिंदगी जीने को
फिर से कर जाता है मन

केशी गुप्ता
लेखिका समाज सेविका
द्वारका दिल्ली

2 Likes · 6 Comments · 665 Views
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