मन ही बंधन – मन ही मोक्ष ।
तन थके है ।
ये मन कहां रुके है।
करता है विचरण ।
अनंत ब्रह्मांड तक।
तारो की चकमक।
सूर्य का उजाला ।
इसके रफ्तार के सामने कहां है टिके है।
मन पर नियंत्रण।
रखता जो बंधन।
एकाग्रता की है।
जो परिसीमन।
विश्व चहेता वो बन जाए।
दिखा जाता है सबको दर्पण।
तन को तो कर सकते हो कैंद।
मन पर कभी लगता न अवरोध।
वैज्ञानिकों का शोध।
विद्यार्थी का बोध।
सफलता का सबके मूलमंत्र।
एकाग्रता इन्द्रियों पर नियंत्रण।
कम करे जो उसका त्वरण
मन ही है वो प्रथम चरण।
जीवन का अंतिम सत्य मरण।
तन का तब होता क्षरण।
इच्छाओ का अंत ही।
है मोक्ष की प्राप्ति।
मन ही है उसकी अनुज्ञप्ति।
मन ये कहां कहां है भटकता।
मानव न खुद को जान पाता।
पेट को भरना परिवार चलाना।
ज़िन्दगी को इसी में सबका बीताना।
अब है कहां अंदर वो चेतना।
करते है सब कोरी कल्पना।
संघर्ष चलता रहे।
हौंसला का जिसमे दमखम भरे।
है वहीं सफल।
करता है जो हकीकत से सामना।
मन ये ठहरता कहां है।
करता चला जाता हैं।
कामना पर कामना।
कहते आनंद सबसे।
मन ही है सब कुछ।
ईश्वर भी है इसी को कर नियंत्रण।
तभी करते है सब उनकी पूजा याचना।
आप को भी मैं कहता हूं।
मन पर नियंत्रण रखो हो नजर अपने लक्ष्य पर।
अगर आप चाहते हो दुनिया को मापना।