मन व्यथित अछि हमर..
मन व्यथित अछि हमर..
(मैथिली भगवती गीत)
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मन व्यथित अछि हमर..
माता किछु तऽ करू ।
माता दुर्गे हमर ,
अहां सब दुख हरु ।
हम नहीं जानि एहि जग में ,
कोई आओर अछि हमर ।
अहां के ममता बिना , अहां के ममता बिना ,
बीचे मजधार फंसल अछि जीवन जेना।
कण-कण में पसरल अछि, अहींक महिमा,
लोर झहरैत अछि देखु ने,आंखि से कोना।
कनि ताकु इम्हर.. कनि ताकु इम्हर..
माता दुर्गे हमर… अहां सब दुख हरु,
मन व्यथित अछि हमर, माता विनती सुनूँ ।
कालक डर से हम पल-पल, नुकायब कतऽ ,
व्याधि घेरईया हमरा, नैया बीचे भंवर ।
जग के कोलाहल सुनि-सुनि ,
आब ते मन अछि विकल ।
संकट में पड़ल अछि जीवन जेना ,
पग-पग ठोकर लगैत अछि, चोटे जेना।
अहां आऊ नेऽ इम्हर.. अहां आऊ नेऽ इम्हर…
माता दुर्गे हमर… अहां सब दुख हरु ,
मन व्यथित अछि हमर, माँ किछु तऽ करू।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – २७ /०१ / २०२२
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विक्रम संवत २०७८
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