मन मेरा मुसकाएगा
मन मेरा मुसकाएगा
हरी पत्तियों से झलकती ये सुनहरी धूप
देती है पैगाम खुशनुमा मौसम का
रंबिरंगे कुसुमों से खिला ये गुलशन
आगज़ करता है मस्ती भरे जश्न का ।
दिन गुजरे झुलसती गर्मी में
रातों को भी करार मिला कहाँ
थक कर घर आने पर भी
किसी अपने का साथ मिला कहाँ ?
खामोश दीवारें करती है बयान
गुजरे हुए दिनों का हाल
बात जो दिल में दबी हुई
कह पाऊँ गी अब मैं किसे ?
बीत जाएँगे पल ये यू हीं
बीते बचपन के वो दिन जैसे
नया सवेरा आएगा
मन मेरा मुसकाएगा ।