मन में हैं बस यादें पापा
1. कब का छूट गया तेरा आँगन,
मन में बस यादें हैं पापा।
सदा सदा को हुई पराई,
छूटा मां का आँचल पापा।
छूटी गालियां, नीम की छाया,
छूटा तेरा साया पापा ।
अब तो सब कुछ सपन हो गया,
मन में हैं बस यादें पापा।
2.राखी पर हूँ आज अकेली,
बचपन के दिन रूठ गए।
अब तो लगता है कि जैसे,
सारे अपने छूठ गए।
भैया भाभी और अनुजगण
है शुभकामना घनेरी।
आनंदमय जीवन हो सबका,
यही मंसा है मेरी।
3.मेरी भी एक दुनिया बन गई,
नए लोगों का साथ मिला।
यहां भी सब कुशल क्षेम है,
न सिकवा न कोई गिला।
सब सुविधाएँ है जीवन में,
खुशियों की है नहीं कमी।
हम तो बने ही औरों खातिर,
क्यों माने हम इसे गमी।
4.माता पिता मूल्य क्या होता,
इस अनुभव को अब है जाना।
जीवन है एक मंच का अभिनय,
सार बात है अब पहचाना।
कब से नाटक चला आ रहा,
कौन मियाद बता पायेगा।
मम्मी पापा बेटी बेटा,
खेल ये चलता जाएगा।
अंत में है एक बात ये कहना,
सबको रहना है दिन चार।
अपनों में यदि प्रेम भाव हो,
नित खुशियां,हर दिन त्योहार।
पूजा सृजन
लखनऊ
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