मन में इक आशा जगी
मन में इक आशा जगी,नई भोर के संग।
मौसम भी पालक बना,धारे अनुपम रंग।।
लाल लालिमा सूर्य की,करती नव संचार।
आशा में फड़कें सहज,वृद्ध कृषक के अंग।
कुहरा बादल सब छॅटे, रश्मी- रथ आरूढ़,
देखि सूर्य के तेज को,हुआ आज वह दंग।
ले लाठी अब हाथ में,है वह आशावान।
मन में इक विश्वास है,बदलेंगे अब ढंग।
धीमी-धीमी चाल से,चला खेत की ओर,
पंख लगाकर उड़ रहा,चाल चले है चंग।