मन मूरख बहुत सतावै
मन मूरख बहुत सतावै, पल भर चैन न पावै
मन मूरख बहुत सतावै, पल भर चैन न पावै
नहीं सत्संग भजन में लागै, विषयन संग लगावै
भटक रहो दिन रैन, सुख शांति कबहुं न पावै
सुरत नहीं है अंतिम गति की, राम नाम न भावै
कलियंन कलियंन मंडरावै, विषय बाग भटकावै
मुक्ति बंधन कछु नहीं जानै, नित नए राग लगावै
क्षणिक सुखों में लगा हुआ है, जीवन बहुमूल्य गमावै