मन मयूर
देखो नाचता मन मयूरा, हैं पंख छितराये,
मेरा पंख फैलाने को जी चाहता है।
नहीं पंख इसके, मगर दिल एक पंछी
उन्मुक्त उड़ जाने को, जी चाहता है।
बिगुल हैं बजाते, दीवानेपन में बादल,
मेघ बन बरस जाने को जी चाहता है।
सुनकर के बर्खा की खनक और सरगम,
मेरा गीत गाने को जी चाहता है।
बजादे तू मुरली मधुर फिर से मोहन,
मंत्रमुग्ध हो जाने को जी चाहता है।
वो देखो हैं छाई,गगन पर घटाएं,
मन मयूर नचाने को जी चाहता है।
है रजनी पी रही,मधु चांदनी का,
चकौर बन जाने को जी चाहता है।
नव कोंपल फूटती,भू के पोर पोर से,
पिहू पिहू गाने को जी चाहता है।
नीलम शर्मा