मन प्रफुल्लित गात पुलकित है तुम्हारा
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मन प्रफुल्लित गात पुलकित है तुम्हारा.
चाँद ने क्या कह दिया कुछ.
प्रीत को सहला गया कुछ.
आंख ने देखे हैं सपने.
हृदय ने अरमान खोले.
बाजुओं ने कौन सा बीड़ा उठाया. .
पैर ठोकर मार कर पत्थर हटाया.
क्या किसी कर्तव्य ने हैं पुष्प सौंपे.
क्या किसी अधिकार ने तेरा सर उठाया.
युद्ध कोई रोक आये.
दु:ख किसीका सोख आये.
क्या किसी प्रतिकार से बच निकल आये.
या कहीं उपकार का बदला चुकाये.
आदमियत की कथा क्या बाँच आये.
क्या किसी भ्रष्टाचार को हो जाँच आये.
क्या किसी शासन को कर मानवपरक या.
क्या किसी इतिहास में तुम नजर आये.
स्वयं में क्या राम, गाँधी, बुद्ध पाये.
अडिग रह अन्याय को नीचा दिखाया.
किसी संघर्ष में किसी का साथ देकर.
किसीको पार कर आये नदी या नाव खेकर.
किसी मजदूर का या पसीना पोंछ आये.
या कृषक का फाल हल में ठोंक आये.
किसी मन्दिर पे माथा टेक सुख हो मांग आये.
तम के किसी खूंटी में दु:ख को टांग आये.
अब तो सत्यापित करो अपना इशारा.
मन प्रफुल्लित गात पुलकित क्यों तुम्हारा.
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