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3 Jul 2022 · 1 min read

मन प्रदूषित हुए संदली

मन प्रदूषित हुए संदली
*******
(गीतिका)
आधार छंद -वामहालक्ष्मी
मापनी- गालगा गालगा गालगा
समांत-अली, अपदांत ।
*****
मन प्रदूषित हुए संदली ।
अब न महके हृदय की‌ गली ।।1

गिर न जायें यहाँ बिजलियाँ।
शक्ल झुलसें लगेंगी जली ।।2

अब न पछुआ सुहानी लगे ।
ब्यार पुरवा न लगती भली ।।3

ढेर बारूद का जल रहा ।
तोप की आग उगलें नली ‌‌।।4

चल रही है दहकती हवा ।
डाल की जल न जायें कली ।।5

राम जाते सदा ही ठगे ।
जानकी स्वर्ण मृग ने छली ।।6

सोचिये कुछ न कुछ कीजिये ।
नेह की फिर न सिसके लली ।।7
०००
महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
***

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