मन चाहे कुछ कहना….!
मन चाहे कुछ कहना,
फिर सोचूँ अच्छा है चुप रहना,
देख – देखकर आज की दुनिया के हालात,
मन में उठते रहते अनगिनत झँझावात,
कभी लगे जरूरी इन्हें रूप शब्दों का देना।
फिर सोचूँ अच्छा है चुप रहना।
मन चाहे कुछ …..!
लूट, डकैती, भ्रष्टाचार,
बढ़ते जुर्म, बढ़ता अत्याचार,
कैसे कहूँ कितना मुश्किल है सब सहना।
फिर सोचूँ अच्छा है चुप रहना।
मन चाहे कुछ ….!
अभी – अभी उठा मन में यह विचार,
खामोशी से लग पाएगी क्या नैया पार,
नहीं तो क्यों न थामूँ कलम रूपी पतवार,
कायरता है इस तरह मूक बने रहना।
फिर सोचूँ अच्छा है चुप रहना !
मन चाहे कुछ …….!
रचनाकार:- कंचन खन्ना,
मुरादाबाद, (उ०प्र०, भारत) ।
सर्वाधिकार, सुरक्षित (रचनाकार)
दिनांक :- २३.०९.२०१६.