मन के मोती
मन के मोती :-
मन के मरुस्थल में अंधड
प्रश्नों का जब मडराता है
रेत कणों से प्रश्न अनगिनत
उड कर चुभते हैं आँखों में
बचने की कोशिश करता हूँ
मलता हूँ आँखों को फिर भी
प्रश्न तैरते ही रहते हैं
प्रश्न नृत्य करते रहते हैं
प्रश्नों की अनवरत श्रँखला
उलझा लेती है मन मेरा
और मौन में हो जाता हूँ
खो जाता हूँ जैसे राही
खो जाता है मरुस्थल में
भटका करता भूखा प्यासा
ओर छोर पर पा नहीं पाता
चारों ओर रेत बिखरी है
नखलिस्तान ऩहीं मिलता है
पर आशा की किरण सँजोये
पथिक निरँतर चलता जाता
प्रश्नों को सुलझाना होगा
और हलों को आना होगा
हर प्रश्नों का हल होता है
आज नहीं तो कल होता है
प्रश्नों में अति बल होता है
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ज्योति