मन के पंछी को आज़ाद कर
रोया तेरा मन निराश होकर
खाता रहे दुनिया की ठोकर,
आवारा भटके अपनों को खोकर
खुद को ढूँढे हैरान होकर
तू ले गेहरी सांस
तू थाम मेरा हाथ
ले चलूं मैं तुझे उस पार
जहां है एक बड़ा मैदान
सूरज की किरणें अंदर आने दे,
दिल के अंधेरे को भगाने दे,
मन के पंछी को तू आज़ाद कर
ऊंचे पहाड़ों सा ऊंचा उड़ने दे
छोड़ दे दुनिया की फिक्ररें
अब ज़रा जीले आज़ाद होकर
मन है तेरा यूं कोरा कागज़
लिख दे तू हज़ार कहानियाँ इन पर
बुझने ना दे अंदर की आग
ना बुझा तू मन की प्यास
कर खुद पे तू यक़ीं
न छोड़ूंगा मैं तेरा हाथ |