“मन के घाव”
कुछ धाव भरजाते है मलमपट्टी से,
लेकिन… मन के घाव होते इतने गहरे…
नहीं भरते वो प्यार दुलारसे….!
फिर… मन का घाव फैलता है,
तन के हर कोने में,
सुईकी तरह चुभता, कष्ट बहुत देता,
दिल को परेशान करता….!!
धीरे-धीरे दीमक की तरह,
अंदर से इंसान को खोखला बनाता….!
फिर भी नहीं पीछा छोड़ता,
अस्तित्व की नीव को ही हिला देता…..!!!