मन की मुराद
मन की मुराद
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पूरी कर लो हर मुराद मन की ,
पर ये तो नामुराद, सदा रहती ।
मलयज से लेपित,कर लो तन की,
मल-मुत्र सदा तन में रहती।
पर दिल में यदि ,भाव भरो उत्तम ,
वो सृष्टि के आँचल में,सदा बसती ।
प्रेम मूलमंत्र है, सब धर्मों का ,
भावों का समंदर लिए फिरती।
यही पाया था, तप से बुद्ध ने भी,
सम्यक ज्ञान की अलौकिक ज्योति ।
मानव लक्ष्य है ,प्रभु प्रेम भाव ,
समझने में क्यूँ,ये जीवन खपती ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ११ /०४ /२०२२
चैत,शुक्ल पक्ष,दशमी ,सोमवार
विक्रम संवत २०७९
मोबाइल न. – 8757227201