मन की मन में रह गयी , साध लिया व्रत मौन ।
मन की मन में रह गयी , साध लिया व्रत मौन ।
पाण्डे ऐसे दौर में , सच सुनता है कौन ।।
सच सुनता है कौन ,समय की है बलिहारी ।
ठकुरसुहाती सही , गलत है जो हितकारी।
मात्र प्रशंसा चाह , प्रकृति है ओछे जन की ।
कैसे हो बदलाव , बात जब हो बस मन की ।।
सतीश पाण्डेय