मन की बुलंद
मन की बुलंद( शीर्षक)
मरकर भी जीने की, चाह है तुझमें,
तो मैं बताती हूं कि क्या नाज है तुझमें।
खुद को कभी किसी से ,गिरा मत समझना,
कितनी भी अटकलें हो राह में ,पीछे मत हटना।
इस जग में तुझे तब तक ,देखना नहीं है,
जब तक तू खुद को ,दिखाने लायक नहीं होता।
जिन लोगों का आज तुझ पर, ध्यान नहीं है,
विश्वास नहीं है ,सम्मान नहीं है।
दिखा दे उनको कि तू क्या चीज है,
जिंदगी में ज्ञान एक ,ऐसी ताबीज है।
मन भी प्रसन्न हो व दिशा की खोज हो,
हाथों में जिंदगी की ,वह दिव्य ज्योति हो।
उस ज्योति में जलकर ,खुद को निखार लेना,
ले दिव्य चक्षु को, नौका पार कर लेना।
जब भी जिंदगी में परिस्थितियों की, हड़कंप मच जाए ,
उस वीरांगना लक्ष्मीबाई को, तू याद कर लेना।
ले हौसले बुलंद ,कर्म को पूरा कर,
बदलेगी जिंदगी एक दिन ,समय पूरा कर।