मन की बात
हर दिन ऐसा होता ही है
ख्वाब अधूरा सोता ही है
बचता चाॅंद अधूरा चिटका..
फूट-फूट कर रोता ही है
कौन कहानी अब कहता है..
शिशु परियों बिन सोता ही है
अपनी अपनी सब सोचे हैं
ना अपना कोई होता ही है
रिश्तों के कांटे गड़ते हैं,
कोई कैक्टस बोता ही है।
प्रिय से दूरी सहज नहीं है,
मन तो पागल होता ही है।।
कहाँ मानता है मन अपना?
रिश्ते बेबस ढोता ही है।
जो तोड़े विश्वास किसी का,
कोई ऐसा होता ही है।।
चाह न करना बस फूलों की,
काँटे कोई बोता ही है।।
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ