मन की बात
साहेब के मन की बात पे अपनी मन की बात
कुछ तेरी कुछ मेरी कुछ हम सब के मन की बात
गिरे हुए, कुचले हुए, दबे हुए लोगों के
उस दाब की बात, दाबे जाने की बात
बात ही बात है कहने करने को
कितने ही मन की दबी छुपी अनकही बात
जलते घरों की राखों से उठती शिश्कियों की बात
पेड़ों पे लटके किसान के मुंह से झांकते जीभ की बात
तेजाब से जली लडकी की जलते देह में जलते आत्मा की बात
अजनमी बेटियों की गर्भ में ही दम घुटती चीखों की बात
उन चीखों में मांओं की घुटती चीखों की बात
बेटियों के जननांग को नापती
कुत्सित बलात्कारियों और उन्हें बेशर्मी से बचाने वालों की बात
जननी की पहचान जननांग तक ही सीमित करने की बात
कितनी बात है बातों बातों में करने की बात…
~ सिद्धार्थ