मन की बात
बहुत बार टूटे बहुत चोट खाये।
सफलता कि सीढ़ी पे सब लड़खडाए।।
हमे देखकर लोग जलते बहुत हैं,
जरूरी नहीं है कि हम तिलमिलाए।।
पनपने न दे झाड़ झंकार जिनको,
तो क्या वृक्ष उनपर भी आंसू बहाये।।
यहाँ मुश्किलों का समुन्दर मिलेगा
कभी पार उतरे कभी डूब जाये।।
हमें तुम मिटा दो मगर याद रखना
ये वो शब्द है जो मिटे न मिटाये।।
बहुत भीड़ है नफरतों का शहर है
परिन्दा यहाँ क्या उड़े फड़फड़ाये।।
शिवी दर्द ही दर्द है इस जहाँ में
कोई तुमको पूजे कोई मुंह बनाये।।
© डॉ. शिवानी शिवी