मन की पीड़ा क
शीर्षक – मन की पीड़ा
*****************
सच तो मन की पीड़ा होती हैं।
जीवन और जिंदगी में इच्छा होती हैं।
न अपना न पराया बस मन की सोच होती हैं।
मन की पीड़ा ही उम्मीद और आशा होती हैं।
सच और सही सोच हमारी अपनी होती हैं।
बस मन की पीड़ा हम न किसी से कहते हैं।
आज कल बरसों से मन की पीड़ा रहती हैं।
मन की पीड़ा ही हमारी आशाएं होती है।
न उम्मीद न आशाएं मन की पीड़ा होती हैं।
हम सभी के मन की पीड़ा की सोच होती हैं।
जीवन में हम सभी के मन की पीड़ा होती हैं।
उम्मीद और आशा सपने मन की पीड़ा देते हैं।
निःस्वार्थ भाव जीवन में न मन की पीड़ा होती हैं।
**********************************
नीरज अग्रवाल चंदौसी उ.प्र