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15 Jan 2022 · 1 min read

“मन की पतँग”

सरस स्वप्न सतरंगी उर मेँ, बाँध प्रीति की डोर,
लेकर नव उल्लास, उड़ चली है पतँग, नभ ओर।

कितनी भी, बाधाएं आएँ, दिखेँ मेघ घनघोर,
राग स्नेह का धूमिल हो ना, हो कितना भी शोर।

पैँग बढ़ाकर छुऊँ गगन, प्रतिक्षण बलवती हिलोर,
पेँच उन्हीं के नयनोँ से होँ, वही एक चितचोर।

गिरती, उठती, हिचकोले खा, होती आत्म विभोर,
नहीं आँधियों से भय, दिखता कोई ओर न छोर।

नव “आशा”, सँक्रान्ति मकर, है नयी सुनहरी भोर,
नव उड़ान, है गीत नया, है नृत्य नवल, मन मोर..!

##————##————##———–##

रचयिता-

Dr.asha kumar rastogi
M.D.(Medicine),DTCD
Ex.Senior Consultant Physician,district hospital, Moradabad.
Presently working as Consultant Physician and Cardiologist,sri Dwarika hospital,near sbi Muhamdi,dist Lakhimpur kheri U.P. 262804 M.9415559964

Language: Hindi
Tag: गीत
31 Likes · 34 Comments · 905 Views
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