माँ-बाप का मोह, बच्चे का अंधेरा
चंद्रयान-3 / (समकालीन कविता)
*मन के धागे बुने तो नहीं है*
जिस दिन हम ज़मी पर आये ये आसमाँ भी खूब रोया था,
रंगमंचक कलाकार सब दिन बनल छी, मुदा कखनो दर्शक बनबाक चेष्टा क
कल्पित एक भोर पे आस टिकी थी, जिसकी ओस में तरुण कोपल जीवंत हुए।
*छिपी रहती सरल चेहरों के, पीछे होशियारी है (हिंदी गजल)*
तार दिल के टूटते हैं, क्या करूँ मैं
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
समय
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
रससिद्धान्त मूलतः अर्थसिद्धान्त पर आधारित
पागल बना दिया
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
मैंने एक दिन खुद से सवाल किया —
बुलंदियों से भरे हौसलें...!!!!