मन की गांठ
मन की गांठ
मन की गांठ
नहीं होती ……….
पल्लू बंधी गांठ-सी
पल्लू की गांठ
बांध देती है
मन को
संकल्पी खुंटे पर ..।
…………..
मन की गांठ
नहीं होती……………
फूलदार पौधे की गांठ सी
पौधे की गांठ
महकाए देती है
मन को
फूल.. रंग.. खुशबू …बन।
……………..
मन की गांठ
नहीं होती………
रंगरेज की गांठ सी
रंगरेज की गांठ
हर्षाए देती है
मन को
लहरिया.. बांधनी… पिलीया ..बन।
……………….
मन की गांठ
नहीं होती ………..
कच्चे सूत की गाठ सी
कच्चे सूत की गाठ
खुलती नहीं टूट जाती है।
प्रेम के दो बोल
समर्पित भाव
खोले देते हैं गांठ
मन की
संगीता बैनीवाल