मन की अभिलाषा
हिन्दी बने विश्व की भाषा।
स्वाभिमान की है परिभाषा।
गंगा जमनी जहाँँ सभ्यता,
पल कर बड़ी हुई है भाषा।
संस्कृति जहाँँ वसुधैवकुटुम्बकम्,
हिन्दी संस्कृत कुल की भाषा।
बाहर के देशों में रहते,
हर हिन्दुस्तानी की भाषा।
हर प्रदेश हर भाषा भाषी,
हिन्दी हो उन सब की भाषा।
आज राजभाषा है अपनी,
कल हो राष्ट्रकुलों की भाषा।
बने राष्ट्रभाषा यह ‘आकुल’
बस यह है मन की अभिलाषा।