मन का मनका फेर
एक राजा जिसके दस रानियां थी,
नाम पडा दशरथ,
राजा मन के स्वामी थे,
इसलिए पंच-ज्ञान इंद्रियां तथा पाँच कर्मेन्द्रियों के स्वामी,
समान रुप से देखभाल रखते.
विचलित तो मन के स्वामी भी होते है,
उन्हें नि:सर्ग का बोध रहता है,
वे जानकारी संपूर्ण रखते हैं, बाधा नहीं बनते,
जैसे जलमुर्गाई पानी में रहकर भी अपने पंखों पर पानी नहीं लगने देती, मन तो गिरगिट है,वह तो अहंकार पर जिंदा है,
एक दिन राजा में *अहं का उदय हो गया, दसों रानियों ने विद्रोह कर दिया.
अहंकार के वशीभूत राजा को पहले से जीवन में आनंद और बढ़ गया,
दृष्टि दृश्य की भूखी
जिह्वा स्वाद को लालायित
कर्ण धुन के लिए
नासिक मधुर सुगंध को.
त्वचा स्पर्श को लालायित.
इन सबने मिलकर कर्मेन्द्रियों को प्ररेरित किया,
मन भटक गया,
शरीर साधन बना,
सीता का हरण हुआ,
*दशानन (इंद्रियों के विषय) ने सीता को चुरा लिया,
मन हिस्सों में बंट गया.
शब्द, स्पर्श, रूप,रस,गंध
पैर हस्त वाणी गुदा उपस्थ
वे सब दशानन के अधीन.
छठवीं देह,त्रिगुण
सतोगुण, रजोगुण, तमोगुण और चौथी है उर्जा, जिसे क्रियाशील शरीर कहते है,
सीता अर्थात अमन,चैन,सुख,शांति का तो हरण हो गया, अहंकार-वश
मायावी रूप से तंग आकर, अपनी असहज अवस्था में कोप भवन में लेट गई,
तब दशरथ को युक्ति समझ में आती है, पहले मैं इनका दर्शक था, ये अपने स्वरूप, क्रियान्वयन में स्वाभाविक थी
कभी विद्रोह नहीं किया,
तब राजा ने मन का अध्ययन शुरू किया, शरीर को साधन, मन को साधक, आत्मनिरीक्षण को साधना बनाया,
और दशानन से सीता को मुक्त कराया
मन मस्तिष्क सतत् विकसित होने वाले अपरिमित सीमाओं में विचरण करनेवाले शाश्वत सनातन ईकाई है.
इसे हम केवल हिंदू मुस्लमां पारसी यहूदी ईसाई सीख जैन पर नहीं रोक सकते,
जिन देशों ने तत्वों की बाहर खोज की वे आज समृद्ध हैं,
आदमी आज मशीनी युग का आदती,
मोटर,कार,रेल,हवाई जहाज, बिजली जलपोत, ए.सी, फ्रीज, कूलर इनके बिन असहाय, दूरसंचार, मोबाइल तो जैसे जीवनशैली बन गई.
इसलिए इस समय को कलपुर्जों पर आश्रित *कलियुग भी कह देते है,
हम न संस्कृत, न संस्कृति और न ही सभ्यता को संभाल पाये.
न ही योग, न साधना.
बस दूसरों को नीचा दिखाना,
उभरते की टाँगे खींचकर.
धार्मिक से और धार्मिक होते चले गये
हम अपनी श्रेष्ठता के लिए दुहाई देते रहे, झूठी शान पर गौरान्वित होना ही हमारी स्वाभाविक आदतें.
इस बाधा दौड को वही पार करेगा जो मन का अध्ययन कर,
संमार्ग की ओर बढेगा.
शिक्षा:- हमें परमात्मा ईश्वर की खोज में नहीं, मन के अध्ययन से प्रगति मिलेगी.
Renu Bala M.A(B.Ed) Hindi