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15 Jan 2019 · 2 min read

*** मन का पँछी ***

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।। श्री परमात्मने नमः ।।
???? *** मन का पँछी *** ????
सुनहरी यादों में नन्हीं सी सोन चिरइया के कदमो के आहट ने
चेहरे पर मधुर मुस्कान बिखेर कर मन को रिझाने चली आई
बहते हुए तरंगों से नील गगन की ऊँचाइयों में ,
पँख फैलाकर हौसलों की उड़ान भरने कर्त्तव्य पथ की ओर लेकर चली आई ।
भूली बिसरी यादों को भुलाकर अंर्तमन में ,
डुबकी लगाकर गहराईयों में उतर जीवन रथ को आगे बढ़ने की ललक जगाई ।
उठ जाग रे मन ! अब भोर भई अब रैन कहाँ जो सोवत है
निंदिया से जगाने आँखे खोलने खुशियों का दामन फैला सौगात लेकर आई ।
मीठे से ख्बाबों को हकीकत में नया अंजाम देने के लिए ,
कर्म बंधन की डोरी में बंधकर कदम उठाते हुए चली आई ।
ज़रा झूमकर नाचते गाते उड़ान भरने की ज़िद्द में ,
जीत हासिल करने का जश्न मनाते हुए अपनी अलग पहचान बनाते चली आई ।
नील गगन में उड़ते हुए पंछियों के संग मंदिर और देवालय में ,
उच्च शिखर पर डरते हुए से प्रकृति के नजारों को देख सतरँगी बयार बिखेरते चली आई ।
जीवन की महिमा का भेद किसे सुनाये अपनी मुँह जुबानी से ,
कोई समझ पहचान ना पाये यह शरीर माटी का पुतला
अंत गति सो मति में विलीन होकर ब्रम्हाण्ड लोक में जाकर समाई।
अतीत के पन्नों में गुजरते हुए लम्हों ,हालातों ,जज्बातों से ,
शिकवे शिकायतों के दौर में हल्की सी मुस्कान बिखेरते मन को
बहलाते चली आई ।
कुछ खोया है मगर बहुत है पाया सबसे जुड़कर ही ,
अपने परायों का भेद भाव मिटाकर प्रभु चरणों में प्रीत की लगन लगाते चली आई ।
तुम प्रीत रूप हो माँ ! ! स्नेहिल ममता की छाँव में ,
अंबर के अनगिनत तारों के संग जन्नत की सैर कराते चली आई।
मायामोह के चक्रव्यूह में फंसकर कभी घबराकर कशमकश में ,
*मन का पँछी * चेतन मन से स्वप्न लोक तक उड़ान भरते हुए विश्वास की ज्योति जलाते चली आई ।
?? राधैय राधैय जय श्री कृष्णा ??
?????? *** श्रीमती शशिकला व्यास ***
#* भोपाल मध्यप्रदेश *#

Language: Hindi
1 Like · 424 Views
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