मन का ज्योतिपुंज
मन का ज्योतिपुंज
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मन का ज्योतिपुंज सजा लो,
जो जग को उजियारा करे ।
किसी इष्ट को दिल से भज लो,
जो मन को है प्यारा लगे ।
दिल के भाव तरंगित हो और,
सत्य, कर्णों को न्यारा लगे।
धर्म,किसी का क्या कहता है,
अन्तर्मन में झाँके तो दिखता है।
मर्म, धर्म का समझ गए तो ,
पत्थर में भी दिल बसता है ।
धर्म का मुखड़ा,यदि हैवान लगा ले,
रहेगा वो फिर भी,वो शैतान सदा ।
करूणा,दया यदि,धर्म बिन हो तो ,
वो मानव सच में महान यहाँ ।
धर्म के पावन पथ पर मानव ,
त्याग,तपस्या सद्काम किया ।
कबीर, सूर, नानक बुद्ध ने भी तो,
तपकर्मों का ही बखान किया ।
धर्म का मकसद ही होता है ,
अमन-चैन और सद्भाव सर्वदा ।
पर वो क्यों मौन है ? अनुगामी जिसके ,
करते यहाँ,आतंक और अत्याचार सदा।
साम्राज्यवाद यदि लक्ष्य धर्म का ,
उसका प्रतिकार भी जरूरी है ।
सहिष्णुता का चादर ओढ़कर ,
मनुष्यत्व यहां दुःख झेली है ।
सत्यमार्ग विचलित मत होना ,
ये जीवन सबको प्यारा लगे ।
मन का ज्योतिपुंज सजा लो ,
जो जग को उजियारा करे ।
मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )
तिथि – ०७ /१२ / २०२१
शुक्ल पक्ष , चतुर्थी , मंगलवार ,
विक्रम संवत २०७८
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