मन का करघा
मन का करघा चला सूत से
एक चदरिया बुन डाली
रेशे रेशे में रंग केसरिया से
मन सन्यासी कर डाला
अन्तर्मन में तुझे सजाकर
नैनों की ज्योति से कर आरत
श्वासों के दीपों से वंदन कर
मन अर्पित कर डाला
कान्हा कान्हा बोल मैं डोला
वंशी की मीठी धुन ले सोया
ह्रदय में राधा मीरा धारण कर
मन ही वृंदावन कर डाला
मीनाक्षी भटनागर
नई दिल्ली
स्वरचित