मन और बच्चा
कह रहा है दिल में छुप के बैठा इक बच्चा कोई
नौकरी से ही क्या ये मन सिर्फ है भरता कोई।
अब पढ़ाई, खेल सब ही फोन पर होने लगे
है खिलौने वो कहाँ अब है कहाँ बस्ता कोई।
मुद्दतों से सुन रहा है झूठ के अफसाने दिल।
कह रहा जग में नहीं मिल पा रहा सच्चा कोई।
फुरसतों में दिन पुराने याद आ ही जाते हैं
उन दिनों की भीड़ में से अब नहीं दिखता कोई।
आज से,अब से “कमल” बदलाव कर लो कुछ ज़रा।
रोज ही जाने कहाँ से मन में ये कहता कोई।