मन और जीवन
मन और जीवन
है मन चंचल-जीवन गतिवान,
दोनोंही परस्पर चलते हैं।
ग़र मन है शाश्वत और कर्मठ,
तभी जीवन उद्देश्य फलते हैं।
जब मन के दीपक जलते हैं,
जीवन को उजियारा करते हैं।
जीवन रथ का एकमात्र सारथी ये मन है,
मन की एकाग्रता से सद्मार्ग पे चलता जीवन है।
कहां रुकना है कहां चलना, है मन करता इसकी पहल,
हुलस हुलस गाता जीवन,हो जाता है आनंद विहृल।
मन की चंचलता से ही तो जीवन में खिलते हैं कमल,
उल्लासित हो जाता जीवन,बाग में चहके ज्यों बुलबुल।
मन तो इक नग़मा है नीलम, है खुशियों की झंकार,
बिन मन जीवन घुट जाता और हो जाता बेजार।
नीलम शर्मा