मनुष्य का जीवन !
मनुष्य का जीवन !
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बचपन से बुढ़ापा तक का सफ़र….
जीवन किसी कष्ट में ही गुजरता !
सुख के पल हैं कुछ क्षण के लिए….
फिर तो जीवन दु:ख में ही गुजरता !!
जीवन के हरेक मोड़ पर ही मनुष्य ,
अनेक परीक्षाओं के दौर से गुजरता !
बचपन में थोड़ी लापरवाही दिखाता ,
आगे जाकर काफ़ी सतर्क हो जाता !!
जैसे – जैसे ज़िंदगी गुजरती जाती है ,
ज़िम्मेदारियाॅं सबकी बढ़ती जाती हैं !
कठिन परीक्षाओं के दौर से गुजरकर ,
ज़िंदगी एक ख़ास पड़ाव पर आती है !!
ये परीक्षाएं चुनौतियों से जूझने की होती ,
हर समय कुछ ना कुछ चुनौती आ जाती !
आरंभ में पढ़ाई-लिखाई की चुनौती होती ,
पठन-पाठन में ही कितने वक्त गुजर जाते !!
नौजवानों को रोजगार की समस्या आती ,
कई वर्ष ज़िंदगी इसी में सबको उलझाती !
फिर घर-गृहस्थी के दौर की शुरुआत होती ,
यहाॅं पर तो चुनौतियों की झड़ी लग जाती !!
घर – गृहस्थी के झंझट से जूझते-जूझते ,
मनुज बुढ़ापा की दहलीज तक आ जाता !
धीरे – धीरे कई रोगों से ग्रसित होकर वह ,
अपनी जीवन – लीला समाप्त कर जाता !!
सबकी ज़िंदगी का ही सार बस, यही है !
वो इन्हीं क्रियाकलापों के इर्द-गिर्द घूमता !
सचमुच जन्म से मृत्यु तक के सफ़र में….
मनुज कितने सारे कष्टों को सहता जाता !
सुख के पल तो आते हैं कुछ क्षण के लिए ,
पर अधिकांश वक्त दु:ख में ही गुजर जाता !!
स्वरचित एवं मौलिक ।
सर्वाधिकार सुरक्षित ।
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 10 नवंबर, 2021.
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