मनुष्यता नहीँ गयी
सूर्य अस्त की दिशा अतीव भा रही परन्तु
ध्यान दो विवेक नष्ट, रुग्णता नहीं गयी।
दिव्य शक्तियाँ विलुप्त भोग ही प्रधान रंग
खोज रुद्ध किन्तु वो अनन्तता नहीं गयी।
अर्थ प्राप्ति के निमित्त ही जियो नहीँ कदापि
ब्रह्मज्ञान हेतु प्राणबद्धता नहीं गयी।
ये प्रभाव है कवित्व शक्ति और छन्दबद्ध
काव्य का कि आज भी मनुष्यता नहीँ गयी।।
रचनाकार
डॉ आशुतोष वाजपेयी
ज्योतिषाचार्य
लखनऊ