मनहरण घनाक्षरी
मनहरण घनाक्षरी
बावरी पवन चली, चुनरी उड़ाती मेरी
घुंघटा उतारे मेरा, लाज नहीं आती है।
कौन दिशा से वो आई, यौवनको छूती मेरी
दामन को चूम गई, कौन दिशा जाती है।
नज़र नहीं आती है, वो छेड़ मुझे जाती है
सुगंध फैलाती है वो, रोज़ नित आती है।
खिड़की से झांके मेरी, परदे हिलाती मेरे
सीटियां बजाती नित, नींद तोड़ जाती है।
भोर होते नित आती, प्रेम से सहलाती है
उठती नहीं मैं जब, रूठ चली जाती है।
ललिता कश्यप गांव सायर जिला बिलासपुर (हि० प्र०)